Sunday, September 18, 2016

मिठाई का कारोबार

भिखारी लाल को अभी कोई दो साल  ही हुए होंगे अपनी नयी नौकरी ज्वाइन करे हुए. समय पे अपने काम पे आ जाना और समय पे अपने काम को भी पूरा कर लेने की आदत थी उसको. दिन रात काम करके शायद तरक्की के सोपानों पर वो कदम ताल करना चाहता था. तरक्की हुई. विभाग में पूर्व से उच्च पद में प्रोन्नति हो गई. पर क्या था जो भिखारी लाल को अंदर ही अंदर खाये जा रहा था. वो था अपने साथ ही ज्वाइन करने वाला लालचंद।
कारण भी सही था. साथ पढ़े , साथ में नौकरी लगी. मेहनत  भी लगभग बराबर की.क्या   कमी रह गयी जो उसके पास आज भिखारी लाल से ज्यादा बैंक बैलेंस , बड़ा बंगला, बड़ी गाड़ी और एक सुन्दर सी बीवी थी. ये बात भिखारी लाल को खाये जा रही थी. रातों की नींद तो छोड़िये जनाब दिन का चैन भी नसीब  न था उन जनाब को. फिर क्या मरता क्या न करता।  वो पहुँच ही गया लालचंद के पास. लालचंद भी था तो  पक्का यारों का यार. दोस्त का यह हाल उससे देखा न गया. वो अपने इस गुप्त रहस्य  से  आज पर्दा उठाने वाला  था . भिखारी लाल लालायित था, लालचंद के मुखारविंद से इस गुप्त विद्या को सुनने को. लालचंद ने बताया कि उसके पास एक मेज  है जो  पैसा उगलती है. उसने बताया की जब कोई फरियादी उससे किसी काम के लिए आता है तो वो मेज  के नीचे से हाथ मिलाने  मिठाई खिलाने को कहता है। भिखारी लाल को बोध हुआ.  भिखारीलाल समझ  गया था।  की उसको भी अब से मिठाई खाने  की आदत डालनी पड़ेगी. शुगर की दवा तो मिल ही जाती है न बाज़ार में बस  डॉक्टर भी मिल जाये जो खुद  शौक़ीन हो मिठाई खाने का। 

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