Friday, September 16, 2016

क्यों गरजते हो इतना तुम?

क्यों गरजते हो इतना तुम
बादल हो क्या?
क्यों भडकते हो इतना तुम
ज्वाला हो क्या?

क्यों घबराते हो इतना तुम
भयभीत हो क्या?
क्यों गुनगुनाये जाते हो तुम
गीत हो क्या?

क्यों महकते हो इतना तुम
कोई फूल हो क्या?
क्यों चहकते हो इतना तुम
कोई पक्षी हो क्या?

क्यों जलते हो इतना तुम
कोई दिया हो क्या?
क्यों पूजते हो इतना तुम
कोई पुजारी हो क्या?

क्यों रोते हो इतना तुम
कोई नवजात हो क्या?
क्यों दिखतें हो अंजान इतना
कोई अज़नबी हो क्या?

क्यों करते हो अहंकार इतना
कोई राजा हो क्या?
क्यों करते हो हर वक़्त माँग
कोई भिखारी हो क्या?

क्यों करते नहीं कोई काम
कोई अनाड़ी हो क्या?
क्यों जपते फिरते हो माला
कोई ढोंगी हो क्या?

क्यों हो इस जग से वीरान
कोई हवाई हो क्या?
जीवन का है क्या मूल क़भी
समझ पाये हो क्या?
             -विशाल "बेफिक्र"

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