Thursday, December 19, 2019
Friday, December 13, 2019
Wednesday, December 11, 2019
Saturday, January 26, 2019
देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था
राहों में छोड़ आए कुछ हमसफर को
मंजिल पे मिलेंगे कुछ खास फिर ये क्यों
जब मंजिल पे पहुँचे तो खाली हम ही थे
हम खास थे मगर कोई पास आम ना था l
तरसते रहे एक अदद बात को मुलाक़ात को
दिल में ना शांत होने वाले गुबार को लिए
कहने को वहाँ मुँह बहुत बड़ा था मेरा मगर
सुनने को मेरी बात कोई कान ना था वहाँ l
मायूसी में जब कुछ काम ना आया जब
सुनने मेरी जब व्यथा ना कोई आया तब
रोया भर के आँसू आंखों में भरी महफिलों में
देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था l
ये चार दिन की चाँदनी है अँधेरी रातें बाकी हैं
इन राहों में जी ले जिंदगी मंजिल मिल ही जाएगी
कभी तू भी कुछ भूल कभी वो भी कुछ भूलेंगे
खाई बनी है दरमियान वो धीमे धीमे भर ही जाएगी l
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मेहनत की सूखी रोटी का क्या मजा है, खुद्दार हूँ मैं, हराम की बिरयानी एक सजा है ।