Saturday, January 26, 2019

देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था

राहों में छोड़ आए कुछ हमसफर को
मंजिल पे मिलेंगे कुछ खास फिर ये क्यों
जब मंजिल पे पहुँचे तो खाली हम ही थे
हम खास थे मगर कोई पास आम ना था l

तरसते रहे एक अदद बात को मुलाक़ात  को
दिल में ना शांत होने वाले गुबार को लिए
कहने को वहाँ मुँह बहुत बड़ा था मेरा मगर
सुनने को मेरी बात कोई कान ना था वहाँ l

मायूसी में जब कुछ काम ना आया जब
सुनने मेरी जब व्यथा ना कोई आया तब
रोया भर के आँसू आंखों में भरी महफिलों में
देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था l

ये चार दिन की चाँदनी है अँधेरी रातें बाकी हैं
इन राहों में जी ले जिंदगी मंजिल मिल ही जाएगी
कभी तू भी कुछ भूल कभी वो भी कुछ भूलेंगे
खाई बनी है दरमियान वो धीमे धीमे भर ही जाएगी l

Friday, January 11, 2019

धुआँ धुआँ जल के जो ये राख बच गयी,
ये मेरी ज़िंदगी की कुछ आस बच गयी ।
क़यामत आने से जो जलजला बना था,
उस जलजले से बस कुछ आग बुझ गयी ।