Wednesday, February 28, 2018

पिघल गया हूँ

मैं कब से बदल गया?
ये जानना चाहता हूं मैं।
मैं कब से 'मैं' न रहा?
खंगालना चाहता हूं मैं।

कल ही तो तोडी थी मैंने
वो काँच वाली खिड़की ।
घर आकर पड़ी थी मुझपे
पापा की मार और घुड़की ।

तभी आँचल में खींचके दी
थी माँ ने प्यार की थपकी ।
'डांटूंगी तेरे पापा को कैसे दी
मेरे लाल को ये घुड़की' ।

अभी तो यारों के संग बैठ
कर रहा गप्पें-बातें था हज़ार ।
वो स्कूल टीचर की नकल
उतारी मैने थी कई एक बार।

कल ही तो गया था कॉलिज
मस्ती-मजा किया था पहली बार।
'अभी तो दिन हैं अपने यारों
पैसा-रुतबा है अपने लिए सब बेकार'।

पर अब खोया सा हूँ मैं
सोया सा हूँ जागे हैं सब ।
पीछे कैसे छूट गया वो जो
कल तक था मेरा सब ।

मैं तब भी 'मैं' था और
मैं अब भी 'मैं' ही  हूँ ।
उस मैं को दफनाकर अब
इस 'मैं'  में ही बदल गया हूँ।

हाँ मैं अब बदल गया हूँ
मैं खुद को निगल गया हूँ।
तब 'मनमानी' करने वाला
हालातों में पिघल गया हूँ।

-विशाल 'बेफ़िक्र'

मौसम

मौसम का मिज़ाज़ भी क्या है?
कोई क्या समझ पाया है?
कभी गर्माती धूप, कभी ठिठुरन
तो कभी शांत छाया है  ।

कभी पतझड़ , कभी नव कोंपल
ये हर वक़्त लाया है ।
विरह-मिलन, सुख-दुख आएंगे
जीवन को समझाया है ।

तूफान बन, अपनी में ही बस धुन
कहर खूब बरपाया है ।
बारिश बन ,फिर अपनी करनी पर
आँसूं भी खूब बहाया है ।

बादल सा फिर  उमड़ उमड़ कर
हर तरफ शोर मचाया है।
मौसम है ये, बदलेगा हर पल ये
इसे कौन समझ पाया है।

बदलो मत, पर सीखो जज्बे को
जिसने दुनिया को घुमाया है।

-विशाल 'बेफ़िक्र'

Monday, February 5, 2018

चाहिए वो जुनून है!

परिस्थिति पहाड़ हो
कुदरत की लताड़ हो ,
दृष्टि ओझल हो
राह बोझिल हो ,

तन-पीड़ा असहाय हो
जीने का न उपाय हो ,
मन बड़ा अशांत हो
मांगता बस एकांत हो,

तू निडर बढ़े जा
कर्म भर किये जा,
है ज़िगर तेरा भी
मत डर तू ज़रा भी,

खौलता जो खून है
चाहिए वो जुनून है।

-बेफ़िक्र

उतना तू भी

चुभन जितनी सीने में मेरे
चुभन होगी उतनीें तेरे भी,
घुटन जितनी है मुझे भी
घुटन होगी उतनी तुझे भी,
शर्मिंदा जितना हूँ मैं
शर्मिंदा होगा उतना तू भी,
जिंदा मरके जितना हूँ मै
जिंदा होगा उतना तू भी ।
-बेफ़िक्र

Sunday, February 4, 2018

कहाँ अब???

मन-प्रसून प्रफुल्लित ,
     कहाँ अब?
हृदय-उपवन सा
     उजड़ा हो जब ।
जीवन-नीरद सा भरा ,
     कहाँ अब?
आत्मा-धरा सी
     शुष्क पड़ी जब ।
उत्साह-पवन जीवित ,
     कहाँ अब?
अवसाद-शूल सा
     चुभा पड़ा जब ।