Wednesday, February 28, 2018

मौसम

मौसम का मिज़ाज़ भी क्या है?
कोई क्या समझ पाया है?
कभी गर्माती धूप, कभी ठिठुरन
तो कभी शांत छाया है  ।

कभी पतझड़ , कभी नव कोंपल
ये हर वक़्त लाया है ।
विरह-मिलन, सुख-दुख आएंगे
जीवन को समझाया है ।

तूफान बन, अपनी में ही बस धुन
कहर खूब बरपाया है ।
बारिश बन ,फिर अपनी करनी पर
आँसूं भी खूब बहाया है ।

बादल सा फिर  उमड़ उमड़ कर
हर तरफ शोर मचाया है।
मौसम है ये, बदलेगा हर पल ये
इसे कौन समझ पाया है।

बदलो मत, पर सीखो जज्बे को
जिसने दुनिया को घुमाया है।

-विशाल 'बेफ़िक्र'

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