Saturday, December 22, 2018

खुद वो आग बनो

सन्नाटा है जोर का
कोई  तो आवाज़ करो
सोया है जग नींद में
तुम ही शंखनाद करो ।

खिन्न है मन क्यूँ तेरा
खुद ही उपहास बनो
हँस कर चल पड़े जहाँ
तुम वो आग़ाज़ बनो ।

जिस्म से रिसता नहीं अब
लहू न तेरा न ही अब मेरा
धधके ज्वाला सी हृदय में
तुम ख़ुद वो ऐसी आग बनो ।

कठिन सफ़र देख लौटे क्यूँ तुम
यूँ रस्ते पे ही दम तोड़ दिए
चलते रहते यूँ ही राहों में बस 
इरादा मंजिल पाने का हर बार करो ।

Friday, December 21, 2018

शायद अपने गाँव मे

सुकून कहीं मिला था
किसी की बाहों में
वो पीपल की छांव में
वो बहती हवाओं में
शायद अपने ही गाँव में ।

जुनून कभी चढ़ा था
कुछ बनने का हम पर
कभी पैसों की अड़चन में
कभी खुदी की उलझन में
शायद अपने ही बचपन में ।

प्रेम कभी हुआ था
कभी अम्मा के आँचल से
कभी बापू के गुस्साने से
कभी अपने कुछ यारों से
शायद अपने ही दामन से ।

-विशाल "बेफ़िक्र"

Wednesday, December 12, 2018

मीलों का सफर

परिंदों की भी क्या उड़ान होती होगी
पंखों में न सही इरादों में जान होती होगी,
उड़ जाते दूर वो मीलों के सफर पे
मजहबी सीमाएं भी उनसे परेशान होती होंगी ।

-विशाल "बेफ़िक्र"