Friday, December 21, 2018

शायद अपने गाँव मे

सुकून कहीं मिला था
किसी की बाहों में
वो पीपल की छांव में
वो बहती हवाओं में
शायद अपने ही गाँव में ।

जुनून कभी चढ़ा था
कुछ बनने का हम पर
कभी पैसों की अड़चन में
कभी खुदी की उलझन में
शायद अपने ही बचपन में ।

प्रेम कभी हुआ था
कभी अम्मा के आँचल से
कभी बापू के गुस्साने से
कभी अपने कुछ यारों से
शायद अपने ही दामन से ।

-विशाल "बेफ़िक्र"

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