Wednesday, July 1, 2015

तुझे सोच के

सुकून मिलता है
 तुझे देख के ।
जूनून मिलता है
 तुझे सोच के ।

क़यामत आती है 
मुझ पर ।
ऐसे न देख ऐ 
जालिम हसीन ।
रूह को चैन मिलता 
तुझे देख के ।

तेरा जिक्र हो या 
तेरी फिक्र हो ।
तन मन में अजब सी 
बेचैनी होती है ।
जुदा है तू मगर ऐ
 मेरे जाने जिगर ।
डर लगता है तेरी 
जुदाई सोच के ।

-विशाल 'बेफिक्र'



शहर में भूला गांव वाला ।

घूम घूम के थक गया हूँ ।
इस अजब से भंवर में ।
सच ही कहते थे लोग ।
बहुत धक्के हैं इस शहर में ।
हम नहीं थे इतने नादाँ ।
जाएँ तो अब जाये कहाँ ।
छोड़ के आ गया हूँ सब कुछ ।
अब मर मिटेंगे इस शहर में ।
कोई तो हो एक किरण ।
कर सकूं में कुल का पालन ।
मिल जाये इन दो हाथों को काम ।
पढ़ जाये बच्चे और हो प्रभु का नाम ।
बस बेबस हूँ लाचार हूँ में ।
कैसे करूँगा सारे वादों को पूरा में ।
आस लगाये रखता हूँ बस इतनी सी
होगी सुबह कभी मेरी भी ।