Wednesday, July 1, 2015

शहर में भूला गांव वाला ।

घूम घूम के थक गया हूँ ।
इस अजब से भंवर में ।
सच ही कहते थे लोग ।
बहुत धक्के हैं इस शहर में ।
हम नहीं थे इतने नादाँ ।
जाएँ तो अब जाये कहाँ ।
छोड़ के आ गया हूँ सब कुछ ।
अब मर मिटेंगे इस शहर में ।
कोई तो हो एक किरण ।
कर सकूं में कुल का पालन ।
मिल जाये इन दो हाथों को काम ।
पढ़ जाये बच्चे और हो प्रभु का नाम ।
बस बेबस हूँ लाचार हूँ में ।
कैसे करूँगा सारे वादों को पूरा में ।
आस लगाये रखता हूँ बस इतनी सी
होगी सुबह कभी मेरी भी ।



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