Tuesday, September 20, 2016

बहका सा फिर रहा था

महफ़िल में ऐ दोस्त दिल को मिला
तभी आराम था
जब मुहब्बत से तेरी निगाहों का आया
इधर पैगाम था।

शोर था  शबाब था वहां शराब
का इंतज़ाम था
बस आपके ही इस तरफ देखने
भर का काम था।

जूनून सा छाया था मुझ पर इस जी
को क्या आराम था
बहका सा फिर रहा था मैं न लिए
कोई जाम था।

रोके न रुक रहा था जैसे दिल को
पहुँचाना कोई पैगाम था
तेरी अदा तेरे हुस्न के सिवा आँखों को
न कोई और काम था।

महफ़िल में ऐ दोस्त दिल को मिला
तभी आराम था
जब मुहब्बत से तेरी निगाहों का आया
इधर पैगाम था।

              विशाल"बेफिक्र"

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