ढूंढता निशान मैं उस हसीं चमन का सींचा था बागबाँ ने गुल जो वतन का।
खोया है जोश , है आभूषण जो यौवन का कैसे सांस ले कि , जब माहौल है दमन का विशाल"बेफिक्र"
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