Monday, September 19, 2016

ढूंढता निशान

ढूंढता निशान मैं उस
हसीं चमन का
सींचा था बागबाँ ने गुल
जो वतन का।

खोया है जोश , है आभूषण
जो यौवन का
कैसे सांस ले कि , जब
माहौल है दमन का
 
      विशाल"बेफिक्र"





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