Friday, September 16, 2016

जुगनू का हश्र

जीने की वजह क्यों
तलाशता हूँ मैं इस कदर
जैसे जानता नहीं
मौत ही है आखरी डगर ।

हंसने की वजह क्यों
ढूढता हूँ मैं हूँ इधर उधर
जैसे जानता नहीं
ख़ुशी वहीँ है देखूं जिधर।

उड़ने को रहता हूँ क्यों
बेताब बेहिसाब मैं इस क़दर
जैसे जानता नहीं
रहना यहॉ जमीं पर उम्र भर।

चमकने को रहता हूँ क्यों
मैं इतना बेहद बेसबर
जैसे जानता नहीं
मैं उस जुगनू का क्या होता हशर।
           -विशाल "बेफिक्र"
      

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