हुंकार भरो
जयकार करो,
मन के भय
का संहार करो ।
वृद्ध पड़े
इस यौवन में,
नव शक्ति
का संचार करो ।
क्षुब्ध पड़े
हो कब से तुम,
मन-मंदिर
का उद्धार करो ।
शोक करो
मृत का भी न,
फलते जीवन
का रसपान करो ।
बोझिल हो
औरों पे कबसे?
स्वतंत्र हो
न भार बनो ।
हारे हो
कई बार मगर,
जीतने की इच्छा
हर बार करो ।
खोया है अब
तक बस पाने में,
मिल जाएगा
खुद को तैयार करो ।
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