वजूद तेरा भी,
दो एक पल ही
कुछ ज्यादा होगा मुझसे !
फिर क्यों ये
गुरूर किस बात का तुम
पाले फिरते हो !
कदम चार कदम
पे मंजिल है मेरी ,
तेरी भी क्या कुछ दूर है?
फिर क्यों राहों में,
हमसे तुम बेमतलब
यूँ उलझा करते हो !
वक़्त गुलाम है तेरा ,
अभी शायद लेकिन
मैं भी मालिक से कम क्या?
तुझसे आज़ाद हो,
मानेगा वो हुक्म मेरा भी
ये वादा करता हूँ !
-विशाल 'बेफ़िक्र'
No comments:
Post a Comment