Wednesday, March 21, 2018

गुरूर

वजूद तेरा भी,
दो एक पल  ही
कुछ ज्यादा होगा मुझसे !
फिर क्यों ये
गुरूर किस बात का तुम
पाले फिरते हो !

कदम चार कदम
पे मंजिल है मेरी ,
तेरी भी क्या कुछ दूर है?
फिर क्यों राहों में,
हमसे तुम बेमतलब
यूँ उलझा करते हो !

वक़्त गुलाम है तेरा ,
अभी शायद लेकिन
मैं भी मालिक से कम क्या?
तुझसे आज़ाद हो,
मानेगा वो हुक्म मेरा भी
ये वादा करता हूँ !

-विशाल 'बेफ़िक्र'

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