मैं उसको ढूंढता रहा बस,
हर राह में ,और हर मंजिल में ।
वो मिला भी तभी मुझे,
जो झांका था खुदके दिल में ।
मन्दिर-मजारों पे टेका था,
सर मैंने अपना तो कईयों बार ।
झुका न सका सर ये कभी,
झुकना जहाँ था इसे हर बार ।
मजहब बना हमारे लिए था,
कब से हम जीने लगे उसके लिए ।
दो प्यार के बोल काफी थे,
चैन से जीने और मरने के लिए ।
जोड़ो अगर जुड़ता है जो,
कोशिश करो तुम बस इसके लिए ।
टूटे हैं सब, और रूठे भी हैं,
जैसे बैठे हों खुद जुड़ने के लिए ।
मन विचलित है, भयभीत भी,
स्थिर मन किसका कब रहता है ।
सम्यक मार्ग , संयत कर्म से
हर मुश्किल का हल बनता है ।
खोजो अपने को, पाओ ऊंचाई,
नापों अपने को नित नए पैमानों में।
ढूँढो खुदको , पाओ सच्चाई,
मत नाम बना खुदका तू बेईमानों में ।
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