ये कलुषित मन और नीरस जीवन
निर्मल निश्छल रसमय अब कर दे
क्रोध लोभ मोह युक्त हृदय को
फिर से शांत विरक्त अब कर दे
सूना बिन बाल-क्रीड़ा आंगन सा
जीवंत सुखद मन अब कर दे
चीत्कार हाहाकार सा इस जग में
फिर मस्त-मगन अब तू कर दे
कटुता विष अंतर जो अवगुण है
मधुरता शुचिता समभाव अब कर दे
हे ईश्वर! हे प्राणनाथ! हे प्रभु!
मुझको ऐसा ही कुछ तू वर दे !
-विशाल' बेफ़िक्र'
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