मृत्यु को जीवन से भय क्या?
भय भी कोई सच्चाई है?
जग नश्वरहै ,जाता है , जाएगा
तूझपे भी काल-परछाई है ।
भय भ्रम है,शापित है नित्य
दुर्बल को ही सतायेगा यह
वीर ,बली ,मनवीर के तो ये
निकट भी न आ पायेगा ।
जग में शोषित पीड़ित है वो
गूंज जो न उठाएगा
कुकृत्य को सहते हुए भी अपने
मुख में शब्द न लाएगा ।
शूरवीर है मन से जो वो तो
अपनी बात सुनाएगा
अधिकारों से वंचित न हो वो
अपनी नव गंगा बहायेगा ।
-विशाल 'बेफ़िक्र'
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