अब तेरी वफाई की
जरूरत है किसे ?
जब बेवफाई से तेरी जैसी
मुहब्बत सी हो गयी है।
अपने दूजे यार संग
यूँ जलाते हो किसे?
जब परवाने को जल जाने की
आदत सी हो गयी है।
बार बार लिख मेरा नाम
मिटाते हो क्यों?
जब खुद तुझपे कुर्बान करने की
चाहत सी हो गयी है।
हंसती हो मेरे हाल पे ऐसे
क्यों हो इतना बेकदर?
कल ही तो हम 'हम' थे अब
गैरत सी हो गयी है।
कभी मेरे बाँहों में गुजरी थी
वो शामें अब क्यों?
अब मिल जाएं नज़रें तो क्यों
क़यामत सी हो गयी है।
No comments:
Post a Comment