चेहरे पे मेरे आयी उस ख़ुशी को मत देख
दिल में उठे दर्द को छुपाता हूँ
एक दरिया है जिसे सुखाता हूँ
एक तूफ़ान है जिसे थाम आता हूँ
एक आग है जिसे बुझाता हूँ।
मत पूछो कि नाराज़ सा था क्यों अब तलक
अपनी ख्वाहिशों को दबाता हूँ
इन बंदिशों को अपनाता हूँ
अपनी मनमानी को भुलाता हूँ
मर मर के भी जिए जाता हूँ।
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