Saturday, March 25, 2017

कैसी आज़ादी??

क्यों यूँ तुम इतना बेचैन से हो
कौन सी आज़ादी छिन रही है
सुनते थे शहीदों की दास्ताँ क्यों
फिर वो आज़ादी थी किसलिए
फिर वो क़ुरबानी थी किसके लिये?

अरे पूछों ज़रा उस दीपक से
जो रात भर जला किसलिए
तनहा सा एकांत सा सुबकता सा
सुबह तक न नसीब फिर उसको
जागा वो बेवजह था किसके लिए?

रात के सन्नाटे का खौफ है क्या?
क्या जानोगे तुम सोते हुए
आँखों से नींद भुला सहमे उनसे पूछो
बितादी ज़िन्दगी गुलामी सहते हुए

सुबह हो दोपहर या दिन का कोई पहर
खड़ा है वो सीमा पर हम तभी बेफिकर
न कर सको उसका प्रोत्साहन तुम अगर
करना न शीश नीचे तुम उसका इस कदर

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