बेफ़िक्र आवारा
Wednesday, August 5, 2020
कुछ जल्द चली आई है
लम्हा थमता नहीं, थामना चाहूँ मैं अगर
रेत को भरता हूँ, मुट्ठी से फिसल आयी है,
ज़िन्दगी और जी लेता, जी पाता अगर
मौत दरवाजे पे, कुछ जल्द चली आई है ।
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मेहनत की रोटी
मेहनत की सूखी रोटी का क्या मजा है, खुद्दार हूँ मैं, हराम की बिरयानी एक सजा है ।
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