बेफ़िक्र आवारा
Saturday, January 13, 2018
फ़ितरत
फ़ितरत गुल-ए-गुलज़ार की भी क्या अजीब होती है तोड़ने वाले के सामने भी गम नही मुस्कान ही होती है
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मेहनत की रोटी
मेहनत की सूखी रोटी का क्या मजा है, खुद्दार हूँ मैं, हराम की बिरयानी एक सजा है ।
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