सन्नाटा है जोर का
कोई तो आवाज़ करो
सोया है जग नींद में
तुम ही शंखनाद करो ।
खिन्न है मन क्यूँ तेरा
खुद ही उपहास बनो
हँस कर चल पड़े जहाँ
तुम वो आग़ाज़ बनो ।
जिस्म से रिसता नहीं अब
लहू न तेरा न ही अब मेरा
धधके ज्वाला सी हृदय में
तुम ख़ुद वो ऐसी आग बनो ।
कठिन सफ़र देख लौटे क्यूँ तुम
यूँ रस्ते पे ही दम तोड़ दिए
चलते रहते यूँ ही राहों में बस
इरादा मंजिल पाने का हर बार करो ।