इतरा लो तुम अपनी ऊंचाई पे पर कभी हिमालय को देखा है? आगोश में ले अपनी बाहों में जाने कबसे हमें लिए बैठा है।
हो भले कितने गंभीर और धीर पर कभी धरती का सोचा है? हर सितम की गवाहगार जिसने सच झूठ को समाये रखा है।
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