इतरा लो तुम अपनी ऊंचाई पे
पर कभी हिमालय को देखा है?
आगोश में ले अपनी बाहों में
जाने कबसे हमें लिए बैठा है।
हो भले कितने गंभीर और धीर
पर कभी धरती का सोचा है?
हर सितम की गवाहगार जिसने
सच झूठ को समाये रखा है।
इतरा लो तुम अपनी ऊंचाई पे
पर कभी हिमालय को देखा है?
आगोश में ले अपनी बाहों में
जाने कबसे हमें लिए बैठा है।
हो भले कितने गंभीर और धीर
पर कभी धरती का सोचा है?
हर सितम की गवाहगार जिसने
सच झूठ को समाये रखा है।
कभी जली थी मोमबत्तियां
कभी किसी बेटी के लिए
कहीं जलता है शहर
कभी किसी ढोंगी के लिए।
कभी लगा था है दम
उन नेताओं के वादों पर
कभी लगता है , हैं बेदम
वो अपनी कुर्सी के लिए।
कभी उठा था गुबार
क्रोध में सभी का समान सा
आज वो ठंडा है बर्फ है
बदला से है सभी के लिए।
अंत मे बस कहता हूं
सुन लो बात आगे के लिए
सौदा करके इज्जत का
न भीख माँगना गद्दी के लिए।
-विशाल "बेफिक्र"
सफर लंबा हो चाहें कितना भी, कट ही जाता है
इंतज़ार बस उस हमनवा हमसफर का रहता है
सूना से ये जहां सभी का भर ही जाता है
इनकार जब हसीं इक़रार में बदल जाता है
जग उजला पग -पग उजला
चहुँ ओर किरण सा छाते हैं
कहो कि हम अब आते हैं
अंधकार की काली रातों में
एक नन्हा सा दीप जलाते है
कहो कि हम अब आते हैं
दिन रात जलते निस्वार्थ दीपक से
जीवन उपवन सा कर जाते हैं
कहो कि हम अब आते हैं
हक़ है किसका कितना ,हमको क्या?
हम कर्तव्यों पे ही मर मिट जाते हैं
कहो कि हम अब आते हैं
विषम परिस्थितियों में भी हम
एक जीने की राह सुझाते हैं
कहो कि हम अब आते हैं
हम भारत की संतानें हैं नामों में क्या?
कि हम शक्तिपुत्र भी कहलाते हैं
कहो कि हम अब आते हैं
नित नवीन खोजों से हो अवगत
सब बस एक नाम हो जाते है
हम एनटीपीसी कहलाते हैं
हम एनटीपीसी कहलाते हैं