बंदिशें तोड़ हो जा अब आज़ाद
कि ज़माना सो रहा है
मंज़िलें और होगी कैसे फौलाद
यूँ रास्ता तू खो रहा है
जब बेगुनाह बन बेपरवाह क्यों
गुनाहगार हो रहा है
जब है सिंह तो कर दहाड़
यूँ गीदड़ सा डर रहा है
तू है सागर तो जा जाकर क्यों
नदियों सा बह रहा है
तूफानों के बाद भी बचा वटवृक्ष
क्यों पौधों सा मर रहा है
सूर्य सा प्रकाशित है फिर तारों
को क्यों गिन रहा है
यौवन का संचार है फिर क्यों जीवन
वृद्धों का तू जी रहा है
तू गगन अपार है क्यों इस देह
में यूँ खुद सिमट रहा है
काल भी डरेगा तुझसे क्यूँ वक़्त का
यूँ मोल कर रहा है।
Monday, February 20, 2017
है सिंह तो कर दहाड़
क़यामत
हवा बहुत तेज़ चल रही थी। सूरज भी अपनी सारी ताक़त झोंक के थका हारा अपने घर की तरफ बढ़ चला था। खुले आकाश की जगह अब काले घनघोर बादलों ने ले ली थी। बल्लू के लिए ये सब कोई कयामत से कम न था। खेत में खड़ी उसकी गेंहूँ की फसल बस शायद इंतज़ार कर रही थी अपनी तबाही का। बल्लू असहाय सा खड़ा बस मौन होके इस मंजर के टल जाने की भगवन से गुहार कर रहा था। बल्लू की इस बार की फसल पूरे गाँव में सबसे अच्छी हुई थी। गेंहूँ का दाना भी वजनीला था। बल्लू को अपनी मेहनत का फल बस मिलने ही वाला था। उसके भी शायद 'अच्छे दिन' आने को थे। घर में उसकी पेट से बीवी ने भी अपने आने वाले बच्चे के अच्छे से लालन पालन के सपने देख रखे थे। पर आज किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। बल्लू के सपने शायद सपने ही रह जाने वाले थे। बल्लू ने सोच रखा था कि इस बार एक फसल अच्छे से हो जाये तो आढ़ती का सारा पैसा सूद समेत चूका दूंगा। फिर शायद क़र्ज़ लेने की नौबत ही न आये। तभी आसमान में देखते हुए उसे पानी की एक बूँद सीधे उसके माथे पे पड़ती है। हाय! ये पानी की बूँद नहीं 'ओला' था । फिर क्या था तड़ तड़ की आवाज़ और सारी फसल जमीन पर । और इसी के साथ बल्लू के अरमान सपने सब बिखर गए। बचा था तो एक शोर जो हर खेत हर घर से आ रहा था। हे भगवान ये क्या हो गया? बल्लू जिस पेड़ के नीचे बैठा था शायद उस पेड़ में कुछ चुम्बकत्व था या बल्लू के अंदर उठने की चाह मर गयी थी की वो बैठा का बैठा रह जाता है। वो भगवान् को कोसते हुए कि एक दिन की भी मोहलत दे देता तो वो रात रात में सारी फसल काट के घर में रख लेता। पर सच्चाई यह थी की बल्लू बर्बाद हो चूका था। उसका सरकार से तो पहले ही विश्वास उठ चुका था, आज ईश्वर से भी उसका नाता टूट गया था। अरमानों की चिता जला के वो मन से टूटा ह्रदय से दुखी हो कर अपने घर को चल देता है जहाँ उसके जैसी ही हालत वाली उसकी बीवी अपने पति का इंतज़ार कर रहि थी।
Sunday, February 19, 2017
कल्लू का एंड्राइड फ़ोन
कल्लू ने मार्किट से नया एंड्राइड मोबाइल फ़ोन अभी खरीद भर था। सालों से कीपैड की बटने दबा दबा कर उसका एक्यूप्रेशर हो रहा था। पर उसको वो आनंद नहीं मिल रहा था। खुश तो था बड़ी मुश्किल से जाने कितनी हजामत और बाल काटने के बाद जो रकम उसने जोड़ी थी आज उसका फल था ये एंड्राइड फोन। उसके घर में आज जश्न का माहौल था। बीवी और चार छोटे बड़े बच्चे खुश थे की आज कल्लू मियां कुछ ऐसा ला रहे हैं जो उनकी किस्मत बदल देगा। कल्लू ने बाजार जाते वक़्त ही इसका संकेत दे दिया था कि आज रात को मुर्गा बना लेना। घर में बीवी की ये ख़ुशी भी शायद शादी के बाद पहली बार आयी थी। कल्लू उस फोन को बड़े एहतियात से घर में ला रहा था। फेसबुक गूगल यूट्यूब न जाने क्या क्या उसके दिमाग में चले जा रहा था। भगवान ग़रीबों के घर खुशियां कुछ ज्यादा ही ज़ोर से लाता है या शायद गरीब थोड़ी सी खुशी में ही अपना सारा जहाँ ढूँढ लेता है। मन में खुशियों की बहार उमड़ पड़ी थी कल्लू के। कल्लू घर का दरवाजा खटखटाता है। वो मुर्गे की खुशबू जो घर के रसोई से आ रही थी , को दरवाजे की दरख़्त से सूंघ पा रहा था। दरवाजा खुलता है। छोटा बेटा पापा क्या लाये कहके लिपट जाता है। इतने में कल्लू के हाथ से वो फोन छिटक जाता है और फोन सीधा ज़मीन से टकराके छिन्न भिन्न हो जाता है। कल्लू को याद आता है कि दूकानदार कुछ टेम्पर्ड ग्लास लगाने की बात कर रहा था, जो वो चाँद रुपये बचाने के लिए मना कर देता है । अब घर में किसी के मरे सा सन्नाटा था। बीवी जब तक उस फोन को ठीक से निहार पाती वो दम तोड़ चूका था। अरमानो की इस कदर अर्थी उठते देख वो टूट के रो पड़ती है। जाके रसोई में मुर्गे को पकाने लग जाती है। इधर कल्लू हक्का बक्का खड़ा होके अपने सपनों को टूटते देखता रहता है। बीवी आती है सभी को मुर्गे को परोस के कोने में जाकर फिर फुट के रो पड़ती है। मुर्गा बहुत स्वाद था पर कोई एक दुसरे को बता नहीं पता है।
भगवान् गरीबों पे कुछ ज्यादा जल्दी खफा भी हो जाता है। ये शायद कल्लू को पता चल गया था।
Wednesday, February 15, 2017
अश्कों की खातिर
तेरी हर ख़्वाहिश को पूरा करने
को ये दिल चाहता है
तुझसे मुहब्बत की आजमाइश
को ये दिल चाहता है
मुकम्मल जहाँ तब होगा नसीब
ऐ मेरे यार अपना तो
जब तेरी हर दुआ में ज़िक्र अपना
भी ज़रा सा आता है
अश्क़ तेरे जो बहें किसी बात पर
दम निकलता है इधर भी
उन तेरे चंद अश्कों की खातिर दुनिया
हिलाने को जी चाहता है
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तेरी हर ख़्वाहिश को पूरा करने को ये दिल चाहता है तुझसे मुहब्बत की आजमाइश को ये दिल चाहता है मुकम्मल जहाँ तब होगा नसीब ऐ मेरे यार अपना तो...
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ज़िंदगी बस जीए जा रहा हूं
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Daily Editorials 1. Trouble in Nepal: On Nepal Communist Party factional fight https://www.thehindu.com/opinion/editorial/trouble-in-nepal-...