Friday, August 7, 2020

तेरे घर पहुंच जाता हूँ

कैसे हैं हम क्या हाल है मेरा, मत पूछो अब
मस्जिद जाता हूँ, कैसे तेरे घर पहुंच जाता हूँ ।

एक सवाल हो

जिंदगी, तुम कमाल हो
मौत से बचा, एक सवाल हो ।

रुबरू

हर एक लम्हा इन्तज़ार था हमें तेरा,
तुम एक घड़ी भी हमसे रूबरू न हुए ।

अनदेखा कर गए

पलकों को एक पल न झुकाया था हमने, तुम्हारे लिए
बेदर्द, बेख्याल हो तुम ,यूँ नज़र नीचे कर अनदेखा कर गए ।

ढीली सी

बेबाक था अंदाज़ तेरा ज़िन्दगी,
अब क्यूँ, सीली-सी ढीली-सी लगती हो ।

तकदीर

तकदीर खेल करती है कई,
खेलो  न खेलो, खिलाड़ी बना देती है तुम्हें ।

मेहनत की रोटी

मेहनत की सूखी रोटी का क्या मजा है,
खुद्दार हूँ मैं, हराम की बिरयानी एक सजा है ।

Thursday, August 6, 2020

आशिक़ी

आशिकी इक धुंआ है 'बेफ़िक्र'
 साँस लेने नही देती, दम ये घोंट देती है 

Wednesday, August 5, 2020

Kitne tanha


कुछ जल्द चली आई है

लम्हा थमता नहीं, थामना चाहूँ मैं अगर
रेत को भरता हूँ, मुट्ठी से फिसल आयी है,
ज़िन्दगी और जी लेता, जी पाता अगर
मौत दरवाजे पे, कुछ जल्द चली आई है ।

महफ़िल में गुम


Night Shift

जब जागेंगे, 
तब दिन-रात का सोचेंगे,
रातों में नींद,
आती नही  मुझे आजकल...
दिन में आई है नींद, 
तो अब रात हुई है मेरी ।


#NightShift

पंख पसारे उड़ चलूँ

पंख पसारे 
उड़ चलूँ,
पंछी बन मैं
उड़ चलूँ ।
नभ-ऊँचाई
नाप लूँ,
कुछ पैमाने भी
जांच लूँ ।
पवन-वेग भी
भाँप लूँ,
नीरद-सीमा भी
कर पार लूँ,
अरुण-लालिमा
में रंग लूँ, 
शीत चाँदनी में
निहार लूँ ।
-विशाल ' बेफ़िक्र '


धीमा जहर

कोरोना, तुम  क्या कुदरत का कोई कहर हो,
लीलते जान को बस, तुम एक धीमा जहर हो ।
कहते थे जो युद्ध करेंगे , भीषण परमाणु से,
महाशक्तियाँ वो अक्षम हैं , सूक्ष्म विषाणु से ।

जय श्रीराम !

भव-बाधा सब
हरते राम,
कृपा-भाव ही
रखते राम,
मर्यादा-मान का
बस सम्मान,
पुत्र, बंधु, पति,
पिता श्रीराम,
कर्तव्य-परायण
हर बन्धन में राम,
पुरुषों में उत्तम
हैं प्रभु राम,
देवों के राजा
जय श्री राम,
संकट अनेक तुम
सहते राम,
मिथ्या, सच में
हो तुम राम,
मन,तन में 
बसते श्रीराम ।
-बेफ़िक्र

Tuesday, August 4, 2020

चश्मे खुशफहमी के आंखों में न रहेंगे ।

1. 
हुक्मरानों के तब तख्तोताज हिलेंगे...
जब चश्मे खुशफहमी के आंखों में न रहेंगे ।

2.
 तक़दीर इस कदर सोई है मेरी...
उसको जगाने में, मैं भी सो जाता हूँ ।

3. 
कोशिशें लाख करता हूँ...
दौड़ जाने की...
कुछ पाने की...
आजमाने की...

4. 
सोया हूँ नींद में ,
मत पूछो क्यूँ..
और कब से ?
देख दुनिया की तस्वीर
शर्म से आंखें ...
बन्द हैं जबसे ।

5. 
सोये हो खोये नहीं...
जाग जाओ ..बेहोश हो अभी.. मदहोश नहीं ।


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@imvishalyadav

Thursday, July 30, 2020

मंजिल

मंज़िल पे क्या रखा है....
मजे जब रास्तों में ही सारे हों ।

किस्मत

किस्मत में जो है वो मिलेगा ही..
मेहनत करले किस्मत बदलते देर नही लगती ।

ख्वाब

ख्वाब रात में आये तो ख्वाब ही रहते हैं....
दिन में अगर देखो तो जीवन खराब करते है ।

बेकार

जिंदगी की दौड़ में भागते रहो....
रुकोगे तो ज़माना तुमको बेकार मानेगा ।

जुस्तजू

जोश जोश में होश का ख्याल रख....
बेहोश होगा तो होश में आने की जुस्तजू करेगा ।

Daily Editorials

Daily Editorials
1. Trouble in Nepal: On Nepal Communist Party factional fight
2. Fall from grace: On Malaysian ex-PM Najib Razak
3. Reputation of scientists will be further muddied by our role in this pandemic
4. Regulations proposed by draft report on non-personal data need a relook
5. If we can coexist with animals, we will benefit far more than them

मुद्दतो बाद तुम आये

मुद्दतो बाद तुम आये....
आकर बस जाने की बात ही की ।

12 HeHeHe...

12 HeHeHe...

Lake Buka : Chhattisgarh

Lake Buka : Chhattisgarh

दास्ताँ

वैसे तो कलम से लिखी जाती हैं दास्ताँ, पर ज़िक्र हौंसलों का ही होता है वहाँ !

Saturday, January 26, 2019

देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था

राहों में छोड़ आए कुछ हमसफर को
मंजिल पे मिलेंगे कुछ खास फिर ये क्यों
जब मंजिल पे पहुँचे तो खाली हम ही थे
हम खास थे मगर कोई पास आम ना था l

तरसते रहे एक अदद बात को मुलाक़ात  को
दिल में ना शांत होने वाले गुबार को लिए
कहने को वहाँ मुँह बहुत बड़ा था मेरा मगर
सुनने को मेरी बात कोई कान ना था वहाँ l

मायूसी में जब कुछ काम ना आया जब
सुनने मेरी जब व्यथा ना कोई आया तब
रोया भर के आँसू आंखों में भरी महफिलों में
देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था l

ये चार दिन की चाँदनी है अँधेरी रातें बाकी हैं
इन राहों में जी ले जिंदगी मंजिल मिल ही जाएगी
कभी तू भी कुछ भूल कभी वो भी कुछ भूलेंगे
खाई बनी है दरमियान वो धीमे धीमे भर ही जाएगी l

Friday, January 11, 2019

धुआँ धुआँ जल के जो ये राख बच गयी,
ये मेरी ज़िंदगी की कुछ आस बच गयी ।
क़यामत आने से जो जलजला बना था,
उस जलजले से बस कुछ आग बुझ गयी ।

Saturday, December 22, 2018

खुद वो आग बनो

सन्नाटा है जोर का
कोई  तो आवाज़ करो
सोया है जग नींद में
तुम ही शंखनाद करो ।

खिन्न है मन क्यूँ तेरा
खुद ही उपहास बनो
हँस कर चल पड़े जहाँ
तुम वो आग़ाज़ बनो ।

जिस्म से रिसता नहीं अब
लहू न तेरा न ही अब मेरा
धधके ज्वाला सी हृदय में
तुम ख़ुद वो ऐसी आग बनो ।

कठिन सफ़र देख लौटे क्यूँ तुम
यूँ रस्ते पे ही दम तोड़ दिए
चलते रहते यूँ ही राहों में बस 
इरादा मंजिल पाने का हर बार करो ।

Friday, December 21, 2018

शायद अपने गाँव मे

सुकून कहीं मिला था
किसी की बाहों में
वो पीपल की छांव में
वो बहती हवाओं में
शायद अपने ही गाँव में ।

जुनून कभी चढ़ा था
कुछ बनने का हम पर
कभी पैसों की अड़चन में
कभी खुदी की उलझन में
शायद अपने ही बचपन में ।

प्रेम कभी हुआ था
कभी अम्मा के आँचल से
कभी बापू के गुस्साने से
कभी अपने कुछ यारों से
शायद अपने ही दामन से ।

-विशाल "बेफ़िक्र"

Wednesday, December 12, 2018

मीलों का सफर

परिंदों की भी क्या उड़ान होती होगी
पंखों में न सही इरादों में जान होती होगी,
उड़ जाते दूर वो मीलों के सफर पे
मजहबी सीमाएं भी उनसे परेशान होती होंगी ।

-विशाल "बेफ़िक्र"

Saturday, June 30, 2018

मैं चलता रहा

बेख़बर दुनिया से होके
मैं चलता रहा,
बेसबर सब्रों को खोके
मैं चलता रहा ।
बस तेरी याद जो आयी
मैं चलता रहा,
एक तेरी राह देखी उसपे
मैं चलता रहा ।

Saturday, March 31, 2018

झुक जाइये

मुश्किल है राह
चले जाइये ।
करना था वो अब
कर जाइये ।

ऊंची है मंजिल
चढ जाइये ।
न मिले सुकूँ वहाँ
उतर जाइये ।

ख्वाइश छोटी सी
कर जाइये ।
कुछ अपनी पसंद
भी फरमाइए।

बहुत किया ना-ना
हाँ कर जाइये ।
सपनों पे अपने अब
मर जाइये ।

घुटन है अंदर बहुत
बाहर आइये।
नींदों में सोए बेमतलब से
जाग जाइये ।

चुभन है अपनो की
थोड़ा सहलाइये।
दूर तो बरसों से हैं अब
पास आइये ।

वक़्त रुकता नहीं, ज़रा
रुक जाइये ।
क्या मिला ज़िद में?थोड़ा
झुक जाइए ।

Friday, March 30, 2018

इंसानों सा लगता हूँ

बांटो मुझे !
पर मैं कब बंटता हूँ ।
क़ैद करो !
दीवारों में कब सटता हूँ ।

ढूँढो मुझे !
मैं तुझमे ही बसता हूँ ।
पहचानो !
इंसानों सा ही लगता हूँ ।

Thursday, March 29, 2018

नींव

इन मज़हब के उन्मादो में कोई
कब चैन पाया है ।
कहीं राम कहीं खुदा ये देख आज
खूब शरमाया है ।

सेंकी थी रोटी स्वारथ की जिसने
उन्माद की इस आग में
क्या भूखे कमजोर का उससे कभी
पेट भरपाया है ।

मजहब की दीवारों पे अब तो
हुक्मरानों का भी साया है ।
करते थे बातें दीवारों के जरिये अबतो
उन सूराखों को भी भरवाया है ।

हाँ हमसे एक भूल हुई घर बनाते
समय इस हसीं दुनिया में
इमारत को ऊंचा करते रहे और
नींव को न भरवाया है ।


साख पे में आन बैठा

परिंदों सी उड़ान भर के
साख पे मैं आन बैठा ।
देख दुनिया के रंग कई मैं
तेरे दर पे आन बैठा ।

ये तेरी मर्जी है ए मेरे खुदा
अपनाये या न अपनाये,
मैं सब भूल ,सब छोड़छाड़
तेरे घर पे आन बैठा ।

उपहास होता हूँ

देख दुनिया की उदासी
मैं उदास होता हूँ
हंसे जब दुनिया खुलके
मैं उपहास होता हूँ।

दुनिया जब खोये जुबाँ
मैं आवाज़ होता हूँ।
थक के थमे दुनिया तब
मैं आगाज़ होता हूँ।

टूटे हो जब सारे सपने
मैं विश्वास होता हूँ।
जी पड़े जिसे लेके दुनिया
मैं वो साँस होता हूँ।

झूठी दौलत झूठे रिश्ते


मुनासिब न जाना अपनों ने जीते जी
कि हाल पूछ ले कभी मेरा एक बार ।
मरके अपनी दौलत पे देखा है जमावड़ा
लड़ना-झगड़ना अब उनका कइयों बार ।

मैं तो अब इन बातों से उबर चुका हूँ
चढ़नी थी जो इमारत चढ़ चुका हूं ।
उस खुदा की असीम दौलत पाकर मैं
इस झूठी दौलत से तौबा कर चुका हूं।

Tuesday, March 27, 2018

बिकी हुई क़यामत

गज़ब कयामत भी होगी
जो कभी आती नही है ।
जुल्मी गुनाहगारों ने  उसको भी
शायद घूस दे रखी है ।

बिकी तो मौत भी है शायद
जो उनको आती नही है ।
जिंदगी जी रहे हैं किराये पर
तकादे को कोई नही है।

Wednesday, March 21, 2018

हुंकार भरो !

हुंकार भरो
जयकार करो,
मन के भय
का संहार करो ।

वृद्ध पड़े
इस यौवन में,
नव शक्ति
का संचार करो ।

क्षुब्ध पड़े
हो कब से तुम,
मन-मंदिर
का उद्धार करो ।

शोक करो
मृत का भी न,
फलते जीवन
का रसपान करो ।

बोझिल हो
औरों पे कबसे?
स्वतंत्र हो
न भार बनो ।

हारे हो
कई बार मगर,
जीतने की इच्छा
हर बार करो ।

खोया है अब
तक बस पाने में,
मिल जाएगा
खुद को तैयार करो ।

गुरूर

वजूद तेरा भी,
दो एक पल  ही
कुछ ज्यादा होगा मुझसे !
फिर क्यों ये
गुरूर किस बात का तुम
पाले फिरते हो !

कदम चार कदम
पे मंजिल है मेरी ,
तेरी भी क्या कुछ दूर है?
फिर क्यों राहों में,
हमसे तुम बेमतलब
यूँ उलझा करते हो !

वक़्त गुलाम है तेरा ,
अभी शायद लेकिन
मैं भी मालिक से कम क्या?
तुझसे आज़ाद हो,
मानेगा वो हुक्म मेरा भी
ये वादा करता हूँ !

-विशाल 'बेफ़िक्र'

Sunday, March 18, 2018

मत नाम बना बेईमानों में !

मैं उसको ढूंढता रहा बस,
हर राह में ,और हर मंजिल में ।
वो मिला भी तभी मुझे,
जो झांका था खुदके दिल में ।

मन्दिर-मजारों पे टेका था,
सर मैंने अपना तो कईयों बार ।
झुका न सका सर ये कभी,
झुकना जहाँ था इसे हर बार ।

मजहब बना हमारे लिए था,
कब से हम जीने लगे उसके लिए ।
दो प्यार के बोल काफी थे,
चैन से जीने और मरने के लिए ।

जोड़ो अगर जुड़ता है जो,
कोशिश करो तुम बस इसके लिए ।
टूटे हैं सब, और रूठे भी हैं,
जैसे बैठे हों खुद जुड़ने के लिए ।

मन विचलित है, भयभीत भी,
स्थिर मन किसका कब रहता है ।
सम्यक मार्ग , संयत कर्म से
हर मुश्किल का हल बनता है ।

खोजो अपने को, पाओ ऊंचाई,
नापों अपने को नित नए पैमानों में।
ढूँढो खुदको , पाओ सच्चाई,
मत नाम बना खुदका तू बेईमानों में ।

Wednesday, March 14, 2018

उन पन्नो को मैं कुछ तो भर आता हूँ!

फिर से ज़िन्दगी को 
मैं जी आता हूँ,
बासी रिश्तों को ताजा 
मैं कर आता हूँ।
उन कोरे पन्नो पे कुछ 
लिखना था कभी,
उन पन्नो को कुछ तो 
मैं भर आता हूँ।

कहना बहुत था लेकिन
किसको और कितना?
भूल लाज-शर्म अब वो 
मैं कह ही आता हूँ।
फासलें पनपेते अपनों में,
किसी वजह से,
जाने-अनजाने के फासलों को 
मैं पाट आता हूँ।

बहुत रह लिए गुमराह होकर  
खुद की सच्चाई से,
झूठों के पर्दों से बेनक़ाब 
मैं हो ही आता हूँ।
दुनिया मुझसे ही थी,
आ दुनिया की फिक्र  करते
उस बोझिल 'मैं' को कहीं 
अब मैं विसराता हूँ।

जो है ,वो अभी है, यहीं है,
और हमीं से है,
ये आसमां जुड़ा जब ,
कहीं तो जमीं से है ।
क्यों न मैं भी बस जीने 
भर की ही सोचूँ,
यह कहना बस ही मेरा , 
आप सभी से है।

-विशाल 'बेफ़िक्र'