बेफ़िक्र आवारा
Friday, August 7, 2020
तेरे घर पहुंच जाता हूँ
अनदेखा कर गए
Thursday, August 6, 2020
Wednesday, August 5, 2020
कुछ जल्द चली आई है
Night Shift
पंख पसारे उड़ चलूँ
धीमा जहर
जय श्रीराम !
Tuesday, August 4, 2020
चश्मे खुशफहमी के आंखों में न रहेंगे ।
Thursday, July 30, 2020
Daily Editorials
Thursday, December 19, 2019
Friday, December 13, 2019
Wednesday, December 11, 2019
Saturday, January 26, 2019
देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था
राहों में छोड़ आए कुछ हमसफर को
मंजिल पे मिलेंगे कुछ खास फिर ये क्यों
जब मंजिल पे पहुँचे तो खाली हम ही थे
हम खास थे मगर कोई पास आम ना था l
तरसते रहे एक अदद बात को मुलाक़ात को
दिल में ना शांत होने वाले गुबार को लिए
कहने को वहाँ मुँह बहुत बड़ा था मेरा मगर
सुनने को मेरी बात कोई कान ना था वहाँ l
मायूसी में जब कुछ काम ना आया जब
सुनने मेरी जब व्यथा ना कोई आया तब
रोया भर के आँसू आंखों में भरी महफिलों में
देखने को तमाम मगर पोंछने को हाथ न था l
ये चार दिन की चाँदनी है अँधेरी रातें बाकी हैं
इन राहों में जी ले जिंदगी मंजिल मिल ही जाएगी
कभी तू भी कुछ भूल कभी वो भी कुछ भूलेंगे
खाई बनी है दरमियान वो धीमे धीमे भर ही जाएगी l
Friday, January 11, 2019
Saturday, December 22, 2018
खुद वो आग बनो
Friday, December 21, 2018
शायद अपने गाँव मे
सुकून कहीं मिला था
किसी की बाहों में
वो पीपल की छांव में
वो बहती हवाओं में
शायद अपने ही गाँव में ।
जुनून कभी चढ़ा था
कुछ बनने का हम पर
कभी पैसों की अड़चन में
कभी खुदी की उलझन में
शायद अपने ही बचपन में ।
प्रेम कभी हुआ था
कभी अम्मा के आँचल से
कभी बापू के गुस्साने से
कभी अपने कुछ यारों से
शायद अपने ही दामन से ।
-विशाल "बेफ़िक्र"
Wednesday, December 12, 2018
मीलों का सफर
परिंदों की भी क्या उड़ान होती होगी
पंखों में न सही इरादों में जान होती होगी,
उड़ जाते दूर वो मीलों के सफर पे
मजहबी सीमाएं भी उनसे परेशान होती होंगी ।
-विशाल "बेफ़िक्र"
Saturday, June 30, 2018
मैं चलता रहा
बेख़बर दुनिया से होके
मैं चलता रहा,
बेसबर सब्रों को खोके
मैं चलता रहा ।
बस तेरी याद जो आयी
मैं चलता रहा,
एक तेरी राह देखी उसपे
मैं चलता रहा ।
Saturday, March 31, 2018
झुक जाइये
मुश्किल है राह
चले जाइये ।
करना था वो अब
कर जाइये ।
ऊंची है मंजिल
चढ जाइये ।
न मिले सुकूँ वहाँ
उतर जाइये ।
ख्वाइश छोटी सी
कर जाइये ।
कुछ अपनी पसंद
भी फरमाइए।
बहुत किया ना-ना
हाँ कर जाइये ।
सपनों पे अपने अब
मर जाइये ।
घुटन है अंदर बहुत
बाहर आइये।
नींदों में सोए बेमतलब से
जाग जाइये ।
चुभन है अपनो की
थोड़ा सहलाइये।
दूर तो बरसों से हैं अब
पास आइये ।
वक़्त रुकता नहीं, ज़रा
रुक जाइये ।
क्या मिला ज़िद में?थोड़ा
झुक जाइए ।
Friday, March 30, 2018
इंसानों सा लगता हूँ
बांटो मुझे !
पर मैं कब बंटता हूँ ।
क़ैद करो !
दीवारों में कब सटता हूँ ।
ढूँढो मुझे !
मैं तुझमे ही बसता हूँ ।
पहचानो !
इंसानों सा ही लगता हूँ ।
Thursday, March 29, 2018
नींव
इन मज़हब के उन्मादो में कोई
कब चैन पाया है ।
कहीं राम कहीं खुदा ये देख आज
खूब शरमाया है ।
सेंकी थी रोटी स्वारथ की जिसने
उन्माद की इस आग में
क्या भूखे कमजोर का उससे कभी
पेट भरपाया है ।
मजहब की दीवारों पे अब तो
हुक्मरानों का भी साया है ।
करते थे बातें दीवारों के जरिये अबतो
उन सूराखों को भी भरवाया है ।
हाँ हमसे एक भूल हुई घर बनाते
समय इस हसीं दुनिया में
इमारत को ऊंचा करते रहे और
नींव को न भरवाया है ।
साख पे में आन बैठा
परिंदों सी उड़ान भर के
साख पे मैं आन बैठा ।
देख दुनिया के रंग कई मैं
तेरे दर पे आन बैठा ।
ये तेरी मर्जी है ए मेरे खुदा
अपनाये या न अपनाये,
मैं सब भूल ,सब छोड़छाड़
तेरे घर पे आन बैठा ।
उपहास होता हूँ
देख दुनिया की उदासी
मैं उदास होता हूँ
हंसे जब दुनिया खुलके
मैं उपहास होता हूँ।
दुनिया जब खोये जुबाँ
मैं आवाज़ होता हूँ।
थक के थमे दुनिया तब
मैं आगाज़ होता हूँ।
टूटे हो जब सारे सपने
मैं विश्वास होता हूँ।
जी पड़े जिसे लेके दुनिया
मैं वो साँस होता हूँ।
झूठी दौलत झूठे रिश्ते
मुनासिब न जाना अपनों ने जीते जी
कि हाल पूछ ले कभी मेरा एक बार ।
मरके अपनी दौलत पे देखा है जमावड़ा
लड़ना-झगड़ना अब उनका कइयों बार ।
मैं तो अब इन बातों से उबर चुका हूँ
चढ़नी थी जो इमारत चढ़ चुका हूं ।
उस खुदा की असीम दौलत पाकर मैं
इस झूठी दौलत से तौबा कर चुका हूं।
Tuesday, March 27, 2018
बिकी हुई क़यामत
गज़ब कयामत भी होगी
जो कभी आती नही है ।
जुल्मी गुनाहगारों ने उसको भी
शायद घूस दे रखी है ।
बिकी तो मौत भी है शायद
जो उनको आती नही है ।
जिंदगी जी रहे हैं किराये पर
तकादे को कोई नही है।
Wednesday, March 21, 2018
हुंकार भरो !
हुंकार भरो
जयकार करो,
मन के भय
का संहार करो ।
वृद्ध पड़े
इस यौवन में,
नव शक्ति
का संचार करो ।
क्षुब्ध पड़े
हो कब से तुम,
मन-मंदिर
का उद्धार करो ।
शोक करो
मृत का भी न,
फलते जीवन
का रसपान करो ।
बोझिल हो
औरों पे कबसे?
स्वतंत्र हो
न भार बनो ।
हारे हो
कई बार मगर,
जीतने की इच्छा
हर बार करो ।
खोया है अब
तक बस पाने में,
मिल जाएगा
खुद को तैयार करो ।
गुरूर
वजूद तेरा भी,
दो एक पल ही
कुछ ज्यादा होगा मुझसे !
फिर क्यों ये
गुरूर किस बात का तुम
पाले फिरते हो !
कदम चार कदम
पे मंजिल है मेरी ,
तेरी भी क्या कुछ दूर है?
फिर क्यों राहों में,
हमसे तुम बेमतलब
यूँ उलझा करते हो !
वक़्त गुलाम है तेरा ,
अभी शायद लेकिन
मैं भी मालिक से कम क्या?
तुझसे आज़ाद हो,
मानेगा वो हुक्म मेरा भी
ये वादा करता हूँ !
-विशाल 'बेफ़िक्र'
Sunday, March 18, 2018
मत नाम बना बेईमानों में !
मैं उसको ढूंढता रहा बस,
हर राह में ,और हर मंजिल में ।
वो मिला भी तभी मुझे,
जो झांका था खुदके दिल में ।
मन्दिर-मजारों पे टेका था,
सर मैंने अपना तो कईयों बार ।
झुका न सका सर ये कभी,
झुकना जहाँ था इसे हर बार ।
मजहब बना हमारे लिए था,
कब से हम जीने लगे उसके लिए ।
दो प्यार के बोल काफी थे,
चैन से जीने और मरने के लिए ।
जोड़ो अगर जुड़ता है जो,
कोशिश करो तुम बस इसके लिए ।
टूटे हैं सब, और रूठे भी हैं,
जैसे बैठे हों खुद जुड़ने के लिए ।
मन विचलित है, भयभीत भी,
स्थिर मन किसका कब रहता है ।
सम्यक मार्ग , संयत कर्म से
हर मुश्किल का हल बनता है ।
खोजो अपने को, पाओ ऊंचाई,
नापों अपने को नित नए पैमानों में।
ढूँढो खुदको , पाओ सच्चाई,
मत नाम बना खुदका तू बेईमानों में ।
Wednesday, March 14, 2018
उन पन्नो को मैं कुछ तो भर आता हूँ!
-
12 HeHeHe...
-
मेहनत की सूखी रोटी का क्या मजा है, खुद्दार हूँ मैं, हराम की बिरयानी एक सजा है ।